जल है तो जीवन है
घट-घट पर्वत के
ह्रदय से, कलरव बहती निर्मल धारा,
शिशिर,
ग्रीष्म,बसंत, हेमंत, हर ऋतु सुनाती अनुराग निराला |
उपनिषद, पुराणों में
वार्णित है, जल जीवन ही उजियारा,
घट-घट पर्वत के
ह्रदय से, कलरव बहती निर्मल धारा ||
लता, पौधे, वृक्ष
पनपते इससे, बरसे तो अमृत ये बन जाता,
तन का मैला, मन का
मैला, पल में सबको स्वच्छ बनाता |
तृष्णा से व्याकुल
हो मानुष, या हो चिंतित कृषक बेचारा,
हर्षित हो जाते हैं
सारे, मिल जाय तो जल- धारा ||
झरना बनकर मन मोह लेता,
मुकुट ये पर्वत का कहलाता,
सरिता बनकर सींचे
धरती, पूजे इसको अन्नदाता |
कण-कण, पग-पग जल ही
जल है, दरिया से सागर सारा,
श्रृंगार धरा का जल
से ही है, जल ही है जीवन धारा ||
जनम से मरण तक इसका,
प्राणी-प्राणी से अदभुत नाता,
कहीं बाढ़ त्रस्त है कोई,
कहीं बिन इसके भूतल सारा तप जाता |
कहीं बरसता बेसुध
होकर, कहीं कोई इसको तरस जाता,
जीवन का ये काल चक्र
है, बिन जल यह ना चल पाता ||
जल को बचाना-जीवन
बचाना, हो अब यह दृढ़ संकल्प हमारा,
व्यर्थ ना जाय बूँद
एक भी, हो जाय जीवन समर्पित सारा |
जल है तो ही कल है,
हो अब यह स्वाभिमान हमारा,
व्यर्थ ना जाय बूँद
एक भी, हो जाय जीवन समर्पित सारा ||
उपनिषद, पुराणों में
वार्णित है, जल जीवन ही उजियारा,
घट-घट पर्वत के
ह्रदय से, कलरव बहती निर्मल धारा ||
No comments:
Post a Comment